आदि जगतगुरू शंकराचार्य जी का हुआ व्याख्यान माला संपन्न

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बलराम राजपूत न्यूज डिण्डौरी
मध्य प्रदेश जन अभियान परिषद डिंडोरी विकासखंड डिंडोरी के तत्वाधान में 11 मई दिन रविवार को आदि गुरु शंकराचार्य जी का व्याख्यान माला कार्यक्रम का आयोजन किया गया । सर्वप्रथम कार्यक्रम के शुभारंभ में आदिगुरु शंकराचार्य जी का दीप प्रज्वलित महंत श्री महेंद्र मुक्तेश्वर गिरी जी महाराज वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता अशोक अवधिया , पूर्व मेडिकल ऑफिसर डॉक्टर देवेंद्र मरकाम ,शिक्षक गया प्रसाद चंदेल तथा विकासखंड समन्वयक गणेश राजपूत की उपस्थिति में किया गया। दीप प्रज्ज्वलन के पश्चात अतिथियों का स्वागत नवांकुर संस्था के सदस्य अजय ठाकुर मनोज व छात्र रामप्रभा द्वारा किया गया तत्पश्चात देवेंद्र मरकाम द्वारा शंकराचार्य का जीवन परिचय दिया गया जिसमें
आदि शंकराचार्य का जन्म केरल में पूर्ण नदी के तट पर कालड़ी नामक गांव में 780 ईसा पूर्व हुआ था उनके पिता का नाम शिवगुरु तथा मां का नाम आर्यम्बा था। शंकर जन्म से 1 वर्ष के भीतर ही बोलना शुरू कर दिए थे 3 वर्ष की अवस्था तक उनकी स्मृति शक्ति विलक्षण हो गई थी उनमें यह समर्थ विकसित हो चुका था कि जो कुछ सुने उसे अक्षर से दोहरा दें कम उम्र में ही काव्य व पुराणों के श्लोक कंठस्थ हो गए थे। अवधिया द्वारा बताया गया कि बाल शंकर जब 7 वर्ष के थे तब उन्होंने सभी शास्त्रों में महारथ हासिल कर ली थी उनकी स्मरण शक्ति इतनी लाजवाब थी वह इतने समर्थ वन गए की वाद विवाद में अपने विरोधियों को संतुष्ट करने में समर्थ थे अध्ययन पूरा करने के बाद वह गुरुकुल से घर वापस आ गए तत्पश्चात उनके मन में सन्यास ग्रहण की इच्छा प्रबल हो गई माता के प्रति अनुराग के कारण उनके मन में दुविधा थी एक दिन वह अपनी माता के साथ पूर्णा नदी में स्नान कर रहे थे तभी शंकर ने चिल्लाना शुरू कर दिया एक मगरमच्छ उनके पैरों को पकड़ कर गहरे पानी में ले जा रहा था बालक का शरीर पानी में डूबता देख वे असहाय हो गई शंकर ने कहा माता जी मुझे सन्यास होने की आज्ञा दें तो शायद मैं कहीं बच पाऊं माता ने आज्ञा दिया आज्ञा पाकर 8 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने अपनी सन्यास यात्रा शुरू कर दी गुरु की तालाश में उन्होंने वन जंगल खाई पहाड़ पर पद यात्रा करते हुए नर्मदा उद्गम स्थल अमरकंटक पहुंचे वहां से उन्होंने अपनी परिक्रमा यात्रा शुरू कर ओंकारेश्वर में उनको गुरु शंकरपादपाचार्य जी कि आने में अपनी परिक्रमा विराम दिए गुरु शंकर पादपचार्य जी के आज्ञा से काशी यात्रा पर निकल गए वे 16 वर्ष की उम्र में सर्व ज्ञातव्य की श्रेणी में पहुंच गए। उनकी नजर में ब्रह्म तथा प्राणी मात्र की नजर में कोई भेद नहीं था वह जातिवाद को ढकोसला मानते थे पूरे भारत को एक कड़ी में जोड़ने के लिए उन्होंने देश के चारों कोनों में चार मठों की स्थापना की। महाराज जी ने कहा आदि गुरु का जाति आदि के मानना था कि यह सब ढकोसला हैं ,इसको छोड़कर मानव ॐ में अपना ध्यान लगाए। तत्पश्चात विकासखंड समन्वयक गणेश राजपूत द्वारा कार्यक्रम को सफल बनाने हेतु सभी का आभार व्यक्त किया कार्यक्रम में जन अभियान परिषद के एमएसडब्ल्यू ,बीएसडब्लू के छात्र मेंटर्स व नवांकुर संस्था के सदस्य उपस्थित रहे।कार्यक्रम के अंत में जल गंगा संवर्धन योजना अंतर्गत जल बचाने व जल संरक्षण हेतु शपथ ग्रहण कराया गया।

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